The Future of Education गांवों में बदलती शिक्षा की तस्वीर: स्मार्ट क्लासेस से हो रहा बच्चों का भविष्य रोशन

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गांवों में डिजिटल क्रांति: स्मार्ट क्लासेस से बदल रहा है बच्चों का भविष्य  ग्रामीण शिक्षा में हो रहा है बदलाव

लंबे समय से भारत के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था संसाधनों की कमी, शिक्षकों की अनुपलब्धता और बुनियादी ढांचे के अभाव से प्रभावित रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला है। अब गांवों के सरकारी स्कूलों में भी धीरे-धीरे डिजिटल क्लासरूम, स्मार्ट टीवी, प्रोजेक्टर, और ऑनलाइन लर्निंग टूल्स जैसे साधन आ रहे हैं। ये सिर्फ पढ़ाई के तरीके को आधुनिक नहीं बना रहे, बल्कि बच्चों की सीखने की गति और जिज्ञासा में भी बड़ा बदलाव ला रहे हैं।

 कैसे काम कर रही हैं स्मार्ट क्लासेस?

स्मार्ट क्लासरूम में बच्चों को पारंपरिक ब्लैकबोर्ड की जगह अब इंटरैक्टिव वीडियो, एनिमेशन, और विजुअल कंटेंट के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, एक साइंस चैप्टर जो पहले किताबों में सूखा और जटिल लगता था, अब वीडियो क्लिप्स और 3D ग्राफिक्स की मदद से बच्चों के लिए समझना आसान हो गया है।

बिहार के औरंगाबाद जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में, CSR के अंतर्गत एक निजी कंपनी ने डिजिटल लर्निंग की सुविधा मुहैया कराई है। वहां की शिक्षिका रीता देवी बताती हैं, “पहले बच्चे मुश्किल से 1 घंटे बैठते थे, अब वीडियो और विजुअल्स देखकर 3 घंटे तक ध्यान केंद्रित कर लेते हैं।”

 तकनीक पहुंच रही है दूर-दराज़ इलाकों तक

उत्तर प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों के आदिवासी और सीमांत गांवों में भी अब NGOs और कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) के ज़रिए ये सुविधा दी जा रही है। Wi-Fi की जगह डाउनलोडेड कंटेंट, सोलर पॉवर्ड सिस्टम, और ऑफ़लाइन ऐप्स के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाया जा रहा है जहां इंटरनेट नहीं है।

दुमका (झारखंड) के एक स्कूल में तो बच्चों को प्रतिदिन 2 घंटे की डिजिटल क्लास मिलती है जिसमें मैथ्स और इंग्लिश के कांसेप्ट्स को गेमिफाइड वीडियो के ज़रिए सिखाया जाता है। वहां की कक्षा 5 की छात्रा काजल बताती है, “पहले गणित में डर लगता था, अब मोबाइल पर देखकर अच्छा लगता है।”

चुनौतियां भी हैं, लेकिन उम्मीदें भी

बेशक ये बदलाव आसान नहीं है। कई जगहों पर बिजली की कमी, तकनीकी स्टाफ की अनुपस्थिति, और टीचर्स को डिजिटल ट्रेनिंग ना मिलना जैसी समस्याएं अब भी हैं। लेकिन जहां भी ईमानदारी से प्रयास हुआ है, वहां नतीजे साफ दिख रहे हैं। छात्रों की उपस्थिति बढ़ी है, परीक्षा परिणाम सुधरे हैं, और पढ़ाई के प्रति रुचि में इजाफा हुआ है।