बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज़ हो चुकी है, और इस बार मतदाता केवल जातीय समीकरणों या पारंपरिक वादों पर नहीं, बल्कि ठोस मुद्दों पर अपना निर्णय लेने के मूड में हैं। राज्य की जनता बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था, शराबबंदी, पलायन और किसानों के मुद्दों को लेकर जागरूक और मुखर हो गई है। आइए, इन प्रमुख मुद्दों पर एक नज़र डालते हैं:
बेरोजगारी बनाम विकास: मतदाताओं की बदलती सोच
बिहार में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। राज्य के युवा बेहतर शिक्षा और रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की 20 साल पुरानी सरकार को “फिसड्डी” करार देते हुए विकास के दावों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि नीति आयोग के विभिन्न सूचकांकों में बिहार सबसे निचले पायदान पर है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य सभी क्षेत्रों में पिछड़ा हुआ है ।
शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था: बड़ी चुनावी मुद्दे
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर भी मतदाता असंतोष व्यक्त कर रहे हैं। बांका जिले में गरीब बच्चों की शिक्षा के नाम पर 1.33 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ है । इसके अलावा, कानून-व्यवस्था की स्थिति भी चिंता का विषय बनी हुई है, जिससे जनता में असुरक्षा की भावना बढ़ी है।
बिहार में शराबबंदी का असर: चुनावी मुद्दा या विफलता?
बिहार में 2016 से लागू शराबबंदी नीति को लेकर मतदाताओं में मिश्रित भावनाएं हैं। एक ओर, घरेलू हिंसा और यौन हिंसा में कमी और पुरुषों के स्वास्थ्य में सुधार देखा गया है । दूसरी ओर, अवैध शराब की बिक्री और जहरीली शराब से होने वाली मौतों की घटनाएं सरकार की नाकामी को उजागर करती हैं । महिलाएं शराबबंदी के समर्थन में हैं, लेकिन इसके प्रभावी क्रियान्वयन की मांग कर रही हैं ।
पलायन और रोजगार: वोटर्स के बीच मुख्य चिंता
स्थानीय रोजगार के अवसरों की कमी के कारण राज्य से बाहर पलायन एक प्रमुख मुद्दा है। युवा वर्ग बेहतर भविष्य की तलाश में अन्य राज्यों की ओर रुख कर रहा है, जिससे राज्य की कार्यशील जनसंख्या में कमी आ रही है। यह स्थिति सरकार के विकास के दावों पर सवाल खड़े करती है।
किसान, छात्र और मजदूरों के मुद्दे
किसानों को फसल की उचित कीमत, छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और मजदूरों को सुरक्षित कार्यस्थल की मांग है। इन वर्गों की समस्याएं चुनावी विमर्श का हिस्सा बन रही हैं। सरकार की नीतियों का सीधा प्रभाव इन वर्गों पर पड़ता है, जिससे उनका समर्थन या विरोध चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
बिहार के आगामी चुनावों में मतदाता केवल वादों पर नहीं, बल्कि सरकार की नीतियों और उनके प्रभावों पर अपना निर्णय लेंगे। बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था, शराबबंदी, पलायन और किसानों के मुद्दे इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे इन मुद्दों पर ठोस योजनाएं प्रस्तुत करें और जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें।